लगभग सं. 1960-61 में फिरोजपुर से आए एक संत हरवंशसिंहजी निर्मल “श्री भादरियाजी महाराज” शुरू से ही गौ माता के भक्त थे. उस दौरान एक खानाबदोश जाति हिंदुस्तान के इस इलाके में यहां बॉर्डर पर गायों को सेवण घास चराने के बहाने आती और गायों को चोरी कर पाकिस्तान ले जाया करती थी. इतना ही नहीं रुपयों के लालच में कुछ, लोग भी हिंदुस्तान से गायों को ले जाकर पाकिस्तान में बेच देते थे. गायों पर होते इस जुल्म के बारे में जैसे ही संत श्रीहरवंशसिंह निर्मल, “श्री भादरियाजी महाराज” को पता चला उन्होंने गौ-हत्यारों के खिलाफ एक बड़ा कदम उठाया. जो खानाबदोश जाति यहां बॉर्डर पर गायों को लेकर आती थी, वो वास्तव में गायों के तस्कर थे। वह यहां के कुछ ऐसे लोगों को देकर जाते थे, जो रुपयों के लालच में इन मूक गौ-वंश को पाकिस्तान में ले जाकर बेच देते थे. महाराजजी को जब यह बात मालूम पड़ी तब उन्होंने अपने सारे काम छोड़ कर, पहले उन खानाबदोश जाति को ऐसा सबक सिखाया, कि उन्होंने इधर आना ही बंद कर दिया. और इसके अलावा महाराजजी खुद पाकिस्तान के बॉर्डर में अंदर जाकर, वहां से गायें वापस छुड़ाकर ले आए और तब से आज तक जो गौशाला उन्होंने स्थापित की थी वह आज भी चल रही है.
श्री भादरियाराय मंदिर ट्रस्ट और श्री भादरियारायजी महाराज का एक ही सर्वोपरि लक्ष्य है वो है गौ माता की रक्षा और सेवा करना साथ ही पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र को बढ़ावा देना। पर्यावण के प्रति श्री भादरिया महाराज के लगाव और उसके देखरेख के साथ-साथ ही श्री भादरियाजी महाराज ने गायों के सरक्षण का बीड़ा उठाया। वर्तमान में श्री भादरियाराय मंदिर ट्रस्ट द्वारा अग्र लिखित मौजूदा इंतजाम किये हुवे है और आगे भी ये प्रयास इसी तरह करते रहने को सभी ट्रस्ट सदस्य अपना नैतिक कर्तव्य मानते है।